*बाबा साहब का निर्वाण दिवस 1992 में खुशी के दिन में कैसे बदला गया...?*





*बाबा साहब अक्सर कहा करते थे कि, "जन्म तो मेरे बस का नहीं था,परंतु हिन्दू रहकर तो नहीं मरूंगा"*

*इसी संकल्प के चलते 1956 में हिंन्दू कारागृह मुक्त होकर बाबा साहब बोद्ध हो गये...*

1992 में मैंने देखा कि शहर से आये कुछ तथाकथित हिंन्दू, *मेरे घर के ठीक सामने ही स्थित,मेगवाल(sc)परिवारों से राम मंदिर की ईंटों के लिए एक-एक रुपया चंदा ले रहे थे.*

मंन्दिर की चौखट तक जाने से वर्जित,नितांत गरीबों से इस प्रकार,शुद्रों के कान में सीसा पिगलवाने वाले, तथाकथित भगवान रामचंद्र के मंदिर के लिए चंदा लेकर,उन्हैं इस संस्कृति से झकड़े रखने की चाल पर मैं तो चुप कैसे रह सकता था.

     *परंतु मैं आश्चर्यचकित था कि, एक रूपये में धार्मिक हो रहे वे लोग भी मुझे सुनने के बजाय उनसे ही राजी थे...*

*बाबा साहब के लोगों के सहयोग से ही चालबाज हिंन्दूओं ने बाबा साहब के निर्वाण दिवस को अपनी खुशियां मनाने के लिए चुना.*
       *आज के दिन एकतरफ देश की 85%आबादी को बाबा साहब को खो देने का दुख है, फिर भी* हिंदू जो बाबा साहब से बेहद खफा है,खुशियां मना रहे हैं.

मित्रों,
इतिहास गवाह कि चरमपंथी धर्मांध लोगों ने बुद्ध के पीछे पागल हाथी लगाया.महावीर के कानों में खीले ठोके.
     कबीर,मीरां,नानक,दादू किसी को नहीं बक्शा.

बाबा साहब के जमाने में तो अंग्रेजों की मेहरबानी समझो कि, भारत अंतर्राष्ट्रीय भूमि हो गया था,जिससे बाबा साहब भी,हमारे लिए इतना कुछ कर सके.
 मोटे तौर पर तो,यदि अंग्रेज नहीं आते तो, सदियों तक हम यह भी नहीं जान पाते कि,हम भी कोई मनुष्य है.

हमारे बड़े बुजुर्ग आज भी कहते हैं कि,हमें तो भगवान ने ही नीचा बना दिया,अब कोई ऊंचे थोड़े ही हो सकेंगे.